Header Ads

.

विश्व इतिहास के पन्नों में इस्कॉन के संस्थापक और एक वैश्विक आध्यात्मिक आंदोलन के जनक श्रील प्रभुपाद- श्रेष्ठ त्रिपाठी

विश्व इतिहास के पन्नों में इस्कॉन के संस्थापक और एक वैश्विक आध्यात्मिक आंदोलन के जनक श्रील प्रभुपाद- श्रेष्ठ त्रिपाठी

भगवान श्रीकृष्ण के सन्देश और कृष्ण भक्ति को दुनिया के कोने-कोने तक पहुंचाने का कार्य करने वाले इस्कॉन के संस्थापक अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद जी की आज पुण्यतिथि है। श्री प्रभुपाद का जन्म 1 सितम्बर 1896 में कोलकाता में हुआ था। यह एक विश्व प्रसिद्ध गौड़ीय वैष्णव गुरु तथा धर्मप्रचारक थे। सन् 1922 में उनकी मुलाकात एक प्रसिद्ध दार्शनिक भक्तिसिद्धांत सरस्वती से हुई। इसके ग्यारह वर्ष बाद 1933 में स्वामीजी ने प्रयाग में उनसे विधिवत दीक्षा प्राप्त की। भक्तिसिद्धांत ठाकुर सरस्वती ने उनको अंग्रेजी भाषा के माध्यम से वैदिक ज्ञान के प्रसार के लिए प्रेरित और उत्साहित किया। 1944 में श्री प्रभुपाद ने बिना किसी सहायता के एक अंग्रेजी पत्रिका आरंभ की जिसका संपादन, पाण्डुलिपि का टंकन और मुद्रित सामग्री के प्रूफ शोधन का सारा कार्य वह स्वयं करते थे। ‘बैक टू गॉडहैड’ नामक यह पत्रिका पश्चिमी देशों में भी चलाई जा रही है और तीस से अधिक भाषाओं में अभी भी छप रही है। प्रभुपाद के दार्शनिक ज्ञान एवं भक्ति की महत्ता पहचान कर गौड़ीय वैष्णव समाज ने 1947 में उन्हें ‘भक्ति वेदांत’ की उपाधि से सम्मानित किया जो अब उनके नाम के साथ जुड़ा है। 1959 में उन्होंने संन्यास ग्रहण कर लिया और श्री राधा-दामोदर मंदिर में ही अठारह हजार श्लोक संख्या के श्रीमद् भागवत पुराण का अनेक खंडों में अंग्रेजी में अनुवाद और व्याख्या की। श्रीमद् भागवत के प्रारंभ के तीन खंड प्रकाशित करने के बाद श्री प्रभुपाद सितंबर 1965 में अपने गुरु देव के अनुष्ठान को संपन्न करने वे 70 वर्ष की आयु में अमेरिका जाने के लिए निकले। जब वह भारत से अमेरिका के लिए रवाना हुए तो उनके पास कुछ किताबों और कपड़ों के अलावा कुछ नहीं था। वो यहां से मालवाहक जहाज से अमेरिका पहुंचे। उनके पास पैसे भी नहीं थे। 32  दिनों की यात्ना के दौरान उन्हें दो बार हार्ट अटैक भी आया। अमेरिका में उन्हें कोई भी नहीं जानता था लेकिन महज डेढ़-दो साल में ही उन्होंने वहां कृष्ण भक्तों का एक ग्रुप खड़ा कर लिया। न्यूयॉर्क में सन् 1966 में उन्होंने अंतरराष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ (इस्कॉन) की स्थापना की जिसे आमतौर पर "हरे कृष्ण आंदोलन" के नाम से भी जाना जाता है। भक्तों की संख्या बढ़ने के बाद न्यूयॉर्क में एक मंदिर स्थापित किया गया। 1967 में सैन फ्रांसिस्को में एक और केंद्र शुरू किया गया और वहां से उन्होंने पूरे अमेरिका में अपने शिष्यों के साथ यात्रा की। सड़क पर चलते हुए चिंतन (संकीर्तन), पुस्तक वितरण और सार्वजनिक भाषणों के माध्यम से आंदोलन को लोकप्रिय बनाया गया। न्यूयॉर्क से प्रारंभ हुई कृष्ण भक्ति की निर्मल धारा धीरे-धीरे पूरे विश्व के कोने-कोने में बहने लगी। सन् 1966 से 1977 तक उन्होंने विश्वभर का 14 बार भ्रमण किया तथा अनेक विद्वानों से कृष्णभक्ति के विषय में वार्तालाप करके उन्हें यह समझाया कि कैसे कृष्णभावना ही जीव की वास्तविक भावना है।
12 साल में उन्होंने विश्व के कई देशों मे 108 मंदिर बनवा दिए एवं जगन्नाथ की रथयात्ना भी विश्व भर में उन्होंने ही शुरू की थी। श्री भक्तिवेदांत प्रभुपाद स्वामी का सबसे महत्वपूर्ण योगदान उनकी पुस्तकें हैं। भक्तिवेदांत स्वामी ने 70 से अधिक संस्करणों का अनुवाद किया। साथ ही वैदिक शास्त्नों- भगवद्गीता, चैतन्य चरितामृत और श्रीमद्भागवतम् का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद किया। 1977 तक खोले गए 108 विश्वव्यापी मंदिरों में से एक, भारत के वृंदावन में कृष्णा-बलराम को समर्पित था। इस्कॉन की स्थापना के बाद सैन फ्रांसिस्को मंदिर से कुछ भक्तों को लंदन, इंग्लैंड भेजा गया जहां वे 60 और 70 के दशक के सबसे पॉपुलर रॉक बैंड 'द बीटल्स' के संपर्क में आए। बीटल्स के जॉर्ज हैरिसन ने सबसे इस्कॉन में सबसे ज़्यादा रुचि दिखाई। उनके साथ लम्बा समय बिताया और बाद में लंदन राधा कृष्ण मंदिर के सदस्यों के साथ एक रिकॉर्ड तैयार किया। अगले वर्षों में उनकी निरंतर नेतृत्व की भूमिका ने उन्हें दुनिया भर में कई महाद्वीपों पर मंदिरों और समुदायों की स्थापना के लिए कई भ्रमण करना पड़ा। 1977 में वृंदावन में उनकी मृत्यु के समय तक, इस्कॉन वैष्णवों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक ज्ञात अभिव्यक्ति बन कर उभर चुका था।
आज पुस्तकों का अनुवाद 80 से अधिक भाषाओं में हो चुका है और दुनिया भर में इन पुस्तकों का वितरण हो रहा है। आंकड़ों के अनुसार अब तक 55 करोड़ से अधिक वैदिक साहित्यों का वितरण हो चुका है।
आज भारत से बाहर विदेशों में हजारों महिलाओं को साड़ी पहने, चंदन की बिंदी लगाए व पुरुषों को धोती-कुर्ता और गले में तुलसी की माला पहने देखा जा सकता है। लाखों ने मांसाहार तो क्या चाय, कॉफी, प्याज, लहसुन जैसे तामसी पदार्थों का सेवन छोड़कर शाकाहार शुरू कर दिया है। उनके अनुयायियों के मुख पर ‘‘हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे।।’’ का उच्चारण सदैव रखने की प्रथा इनके द्वारा स्थापित हुई।
‘इस्कॉन’ के आज विश्व भर में 850 से अधिक मंदिर, विश्वविद्यालय, अनेक संस्था और कृषि समुदाय है। फूड फॉर लाइफ के नाम से भी इन्होंने फ्री खाना शुरू कराया, आज भी 14 लाख बच्चों को इस्कॉन मंदिर खाना बनाकर देते हैं। आज के समय में प्रचलित मिड डे मील भी इसी प्रक्रिया पर आधारित है। 
स्वामी प्रभुपाद के विचार से धर्म का अर्थ है ईश्वर को जानना और उससे प्रेम करना। जब प्रभुपाद अमेरिका गए थे तब वह 70 साल के हो चुके थे। वहां उन्हें कोई नहीं जानता था लेकिन अगले एक-डेढ़ दशक में पूरी दुनिया इस्कॉन को जान गई। यही वो महान शख्स थे जिन्होंने विश्व भर में कृष्ण भक्ति की निर्मल धारा बहाई और लोग भारी मात्रा में प्रभावित होकर कृष्ण भक्ति में लीन 'हरे रामा हरे कृष्णा' जपने लगे। श्री प्रभुपाद जी का निधन 14 नवंबर, 1977 में प्रसिद्ध धार्मिक नगरी मथुरा के वृन्दावन धाम में हुआ। कहा जाता है कि जब यह मृत्यु शैय्या पर लेटे हुए थे, तब भी यह गीता ज्ञान के उपदेश को रिकॉर्ड कर रहे थे।

No comments