दोआब में आसान नहीं किसी दल की राह, किसान आंदोलन और सपा-रालोद गठबंधन के बाद भाजपा ने झोंकी ताकत
दोआब में आसान नहीं किसी दल की राह, किसान आंदोलन और सपा-रालोद गठबंधन के बाद भाजपा ने झोंकी ताकत*
पश्चिमी यूपी में गंगा-यमुना के दोआब की उर्वरा भूमि में वोटों की फसल लहलहाने के लिए सभी राजनीतिक दलों ने ताकत झोंक रखी है। हरियाणा और उत्तराखंड से सटे बागपत, शामली, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर और मेरठ की 26 विधानसभा सीटों पर सर्द मौसम में भी सियासत गर्म है। वर्ष 2017 में भाजपा ने मेरठ, सहारनपुर मंडल में पड़ने वाले इन पांचों जिलों की 26 में से 20 सीटों पर जीत हासिल की थी। सपा को तीन, कांग्रेस को दो और रालोद को एक सीट मिली थी। टिकैत का गढ़ सिसौली जिस मुजफ्फरनगर जिले में है, वहां की सभी 6 सीटें भाजपा ने जीती थीं। तीन कृषि कानूनों की वापसी के बावजूद किसान आंदोलन के प्रभाव वाले इस क्षेत्र में इस बार भाजपा की चुनौती बढ़ी हुई है। फिलहाल शुरुआती दौर में भाजपा और सपा-रालोद गठबंधन के बीच मुख्य मुकाबला नजर आ रहा है। पेश है एक रिपोर्ट… सियासी बहस में हर सरकार के काम को तौल रहे मतदाता मेरठ कॉलेज के पास कुटिया के नाम से मशहूर चाय की दुकानों पर युवाओं, छात्रों, वकीलों और मल्टीनेशनल कंपनियों में काम करने वालों का जमावड़ा लगा रहता है। चाय की चुस्कियों के साथ यहां सरकारें बनाने-गिराने का दौर सुबह से शाम तक चलता है। एडवोकेट शक्ति सिंह कहते हैं, किसान आंदोलन ने तो सियासी हवा ही बदल दी। तीन कृषि कानून बनाते वक्त भी मास्टर स्ट्रोक बताया गया और वापस लिए तो भी…। अब इसमें से कौन वाला मास्टर स्ट्रोक था, पता नहीं। छात्र अभिनव को लगता है कि राममंदिर और जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाना इस चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा है। अभिनव के दोस्त विवेक और हर्ष भी उनका दमदारी से समर्थन करते हैं। वे कहते हैं,
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