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*विवाह स्थलों पर लगे हुए लंबे चौड़े कायनात*:

*विवाह स्थलों पर लगे हुए लंबे चौड़े कायनात*:
 जगमगाती रोशनी ।
साफ-सुथरे सजे कपड़े में शानो शौकत में डूबे लोगों की भीड़,
*डीजे के धुन पर गलबहिया डालें एक दूसरे के साथ थिरकते लोग* और धूम-धड़ाके के साथ छूटते हुए गोले तमाशे ।
कंधे से कंधा लगाकर उचक उचक कर ....
दूल्हे और दुल्हन की सहेलियों को देख लेने की हसरत।
  बफर सिस्टम के नाम से अपनी पहचान बनाए शह भोज के लिए तैयार.....
*कोरोना मय पकवानों की महक*:
 और स्वाद लेकर तरह-तरह के मुंह बनाकर, 
धक्का-मुक्की करके शेष बचे लोग प्लेटो को उठाने की जल्दी में,
 एक दूसरे से टकराते लोग....
 सोशल डिस्टेंसिंग के मुंह पर कालिख मलते नजर आ रहे हैं।
 *भोजन का आनंद लेते सदियों की भूख मिटाते हुए  लोग*;
 सरकार की नीति ,
डीएम का आदेश और थाने के किसी बड़े साहब के भय से अलग रहकर....
 कोरोनावायरस को चैलेंज कर रहे हैं।
 हिंदुस्तान में शायद कोरोनावायरस  भी अपने आप पर रो रहा होगा।
 *कि इतनी मौतें और दहशत के बाद भी*:
 इंडियन पब्लिक अपनी इज्जत और भूख के आगे मुझे ठीक से तरजीह दे पा रहा है।
*50 से ज्यादा बाराती नहीं होंगे ।*
डीएम साहब आपका जुमला हर जगह फेल हो रहा है!
50 से ज्यादा तो बैंड वाले हो जाते हैं साहब ।
लाइट डेकोरेशन मेकअप वाली व अन्य प्रधान सेवकों को छोड़कर ।
*हो सके तो कागजों पर फरमान जारी करने वाले बड़े साहब*!
 कभी आप बाराती या घराती की हैसियत से,
 किसी पांडाल में घुसकर मेरे इस लेख का नज़ारा खुद से देख सकते हैं !
 फिलहाल लोकतंत्र में बहुत कुछ अपने आप जायज हो जाता है।
 एक शब्द है जनता की मांग ।
उनकी जरूरतें और नीयत ।
पिछले चक्र में यदि किसी गांव में एक आदमी को भी कोरोना हो जाता था तो ,
*पूरा गांव सील कर दिया जाता था*!
 आज कोई गांव, मोहल्ला, शहर या बाजार शायद ही ऐसी बचा हो ....
जहां 2,4 लाशें कोरोना के चलते ना पाई गई हों।
*लेकिन शादियों के जश्न में डूबे हुए लोग, मौत की दहशत में नहीं जिंदगी की बाहों में खोए हुए हैं।*
यह बात अलग है कि किसी तहसील तिराहे पर,
 मोटरसाइकिल सवार ने अगर मास्क नहीं लगाया है तो .....
पुलिस वाले उस पर शिकार के मानिंद टूट पड़ते हैं ।
*और तुरंत वही ऑन स्पॉट सारा का सारा कोरोना कंट्रोल कर लेते हैं।*
बगैर उसकी माली हालत जाने।
 कोरोना के नाम पर पागल होने भर को अर्थदंड थमा देते हैं ।
ऐसे बहादुर सिपाहियों से निवेदन करूंगा कि ....
*अपने बड़े साहब के आदेश के पालन में*:
 एक बार बारात घरों की तरफ मुंह करें ।
जहां मास्क .....
शासन प्रशासन को केवल चिढ़ाने के लिए,
 दाढ़ी के नीचे शोभा देता रहता है तो .....
*घूंघट तर रे बाबा गोल गोल गप्पा*......
रसमलाई, भरा पेड़ा , गाजर हलवा,पनीर , कोफ्ता दाल फ्राई चावल पूरी आदि गपा गप लोकमानस के मुंह में समा रहा है ।
कोरोना मुंह के रास्ते उदर में समाता चला जा रहा है।
*महामारी बनाम खातिरदारी, देखना है दोनों में जीत किसकी होती है?*
 फिलहाल केंद्र सरकार.....
भाग्य से रूठे और बंगाल के टूटे हुए सपने के साथ ,
टीएमसी को कोसते हुए ,
 कोरोना की जवाबदारी राज्य के मुख्यमंत्रियों पर सौंपकर,
 *इस बार ताली और थाली दोनों से खुद को दूर कर लिया है।*
अस्पतालों की मोर्चरी और श्मशान घाट पर ,
कोरोना के नाम से आई लाशों की लंबी कतार देखने के बावजूद भी ,
*बरात घरों की शोभा कमजोर नहीं पड़ रही है*!

 

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