*जिला ग्रामोद्योग अधिकारी अंबेडकर नगर की जांच अवश्य करनी चाहिए .*
कि उन्होंने जनपद और बाहर से आए हुए अखबारों को कितने रुपए का विज्ञापन,
विगत वर्षों से लेकर अब तक दिया है।
और विज्ञापन देने में उन्हें किस मानक का प्रयोग किया है ?
*पहचान पहचान कर अलग अलग ब्रांड की रेवड़िया थमा कर अपने पद की गरिमा की रक्षा उन्होंने कैसे अब तक किया था?*
इनका किस अखबार और किस चैनल से ,
किस तरह का कैसा गठजोड़ है ?
किसी को विज्ञापन देने का ,
*और ना देने के विवेकाधिकार का*:
कैसा इस्तेमाल उन्होंने अब तक किया है।
पत्रकार के द्वारा खबर लिखे जाने पर,
यह दुष्प्रचारित करना कि ,
*अमुक आदमी मुझसे भी ज्ञापन मांग रहा था .*!
और नहीं देने पर ....
उसने मुझे बुरी तरीके से नंगा कर दिया ।
*मेरी तथाकथित छबि गिर गई।*
सरकार का फर्ज बनता है कि ,
विभाग से साफ-सुथरे तरीके से पूछे कि *अब तक कितने लोगों को विज्ञापन दिया गया है*
और कितना कितना ?
फिलहाल जन सूचना के माध्यम से यह कार्य बहुत शीघ्र किया जाएगा।
किसी भी शरीफ पत्रकार की छवि को गिराने में अपराधिक तबियत के,
लोग ,
*रटे रटाए संवादों के जानकार अधिकारी ....*
इस जुमले को तमाम बार आजमा चुके हैं ।
ए अधिकारी जो अपनी छवि धूमिल होने के बाबत ,
उसका कारण विज्ञापन बता रहे हैं *हाथ में गंगा लेकर कितनी बार कह सकेंगे कि अपने करप्शन को छुपाने के नाम पर .*
उन्होंने पत्रकारों, समाजसेवियों या अपने ही वरिष्ठ अधिकारियों को समझौता राशि नहीं प्रदान किया है।
*सरिता तिवारी की फाइल पास करते समय*:
ऐसी कौन सी मजबूरी थी कि संबंधित अधिकारी को नैतिकता और अनैतिकता का पाठ भूलकर,
फाइल पास करना पड़ा ।
यह भी जांच का विषय है ।
*कि उन्होंने अब तक कितनी ऐसी अनधिकृत फाइलों को पास किया है*?
और उसके लिए राकेश दुबे ने किस से किस से कितना कितना पैसा लिया है ?
*पत्रकार की गरिमा को हल्के में लेने वाले भ्रष्ट अधिकारियों की फेहरिस्त*:
बहुत लंबी है ।
अगर उसमें .....
*राकेश दुबे जिला ग्रामोद्योग अधिकारी का नाम आया है तो आश्चर्य कैसा ?*
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