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*कुछ नेता मास्क और सामाजिक दूरी का नही करते पालन! क्या कभी कटा उनका चालान?*

*कुछ नेता मास्क और सामाजिक दूरी का नही करते पालन! क्या कभी कटा उनका चालान?*

*चालान काटने वालो की हमेशा तलवार गरीब, बेसहारा और रोजमर्रा के काम में लगे कामगारों पर ही गिरती..!*

भारत में महामारी के दस्तक देने के बाद से सरकार ने मानो राजकोष में हुए घाटे को जुर्माने से ही भरना तय कर लिया हो। पूर्णबंदी के दौरान की बात हो या मौजूदा समय की, जिधर भी नजर डाली जाए, कहीं मास्क ना लगाने का चालान तो कहीं गाड़ी पर भारी-भरकम जुर्माना। एक गरीब अपने परिवार के व्यक्ति को दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करने में सुबह से शाम हो जाती है। वहीं जरा धोखे से भी मास्क चेहरे से खिसका और पकड़ा गया तो उसे भारी भरकम जुर्माना कर दिया जाता है।

सवाल है कि जिसने मुश्किल से पांच सौ रुपए कमाए हो, वह हजारों रुपए कहां से देगा? सरकार को अगर लोगों को मास्क पहनने और सामाजिक दूरी को बनाए रखने के लिए मजबूर करना है, तो इसके लिए जुर्माना तय कर देने से कुछ बड़ा बदलाव नहीं देखने को मिलेगा। सरकार खुद यह तय करे कि उसे क्या करना है। इतने सारे नेता और मंत्री मास्क और सामाजिक दूरी का पालन नहीं करते दिखते हैं, लेकिन किसका चालान कटा? जो लोग सड़क पर आम लोगों को जुर्माना देने पर मजबूर करते हैं, वे बिना मास्क वाले नेताओं के सुरक्षाकर्मी के रूप में देखे जाते हैं।कानून बनाने वाले तो मानो इससे परे हैं! हमेशा तलवार गरीब, बेसहारा और रोजमर्रा के काम में लगे कामगारों पर ही गिरती है। हर मर्ज की दवा जुर्माना नहीं होती। सरकार ऐसी बातों से जनता को भरमाने का काम न करे। अगर सच में सरकार चाहती है कि उसके प्रदेश और केंद्र शासित प्रदेश का नागरिक सुरक्षित रहे, तो उसे जागरूक करे।

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