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*जिला मुख्यालय के गांधीनगर मोहल्ले में कथित वसीयत पर मकान कब्जाने का मामला 1971 में हुई है कथित वसीयत, 1977 में पैदा हुई पुत्री वसीयत के दौरान चार पुत्रियों के ही पिता थे भगवान सिंह*

*जिला मुख्यालय के गांधीनगर मोहल्ले में कथित वसीयत पर मकान कब्जाने का मामला 1971 में हुई है कथित वसीयत, 1977 में पैदा हुई पुत्री वसीयत के दौरान चार पुत्रियों के ही पिता थे भगवान सिंह*



अंबेडकरनगर। जिला मुख्यालय के गांधीनगर उसरहवा मोहल्ले में भगवान सिंह की जिस वसीयत के आधार पर नगर पालिका प्रशासन तथा जिला प्रशासन ने जिस प्रकार से उनके भतीजे विजय कुमार के पक्ष में कार्यवाही कर डाली उसकी हकीकत वसीयत से ही सामने आ जाती है। वसीयत में जो कुछ उल्लेख किया गया है उसे पढ़ने के बाद वसीयत की सच्चाई खुद ब खुद सामने आ जाती है। गोण्डा जिले की तरबगंज तहसील में 15 मार्च 1971 की वसीयत को आधार बनाकर नगर पालिका प्रशासन ने भगवान सिंह का आवास विजय कुमार के नाम कर दिया था। इस वसीयत को कथित रूप से भगवान सिंह ने विजय कुमार के नाम लिखा था। वसीयत में भगवान सिंह ने एक पुत्र व पांच पुत्री होने का हवाला दिया था लेकिन जिस सन में यह वसीयत किये जाने की बात सामने लायी गई है, उस सन तक भगवान सिंह केवल एक पुत्र व चार पुत्रियों के ही पिता थे। उनकी पांचवी पुत्री रेनू 1977 में पैदा हुई है। ऐसे में छः साल पूर्व वसीयत करते समय भगवान सिंह को क्या यह पता था कि उनका छठां अंश पुत्री ही होगी। जिस पुत्री ने संसार में पदार्पण ही नही किया था, आखिर वसीयत में उसका उल्लेख कैसे आ गया। जाहिर है वसीयत के नाम पर फर्जीवाड़ा करने वालों से यह एक बड़ी चूक हो गयी। उन्होंने वसीयत के सन और अंतिम पुत्री के जन्म के बारे में ध्यान नही दिया। यही नही, जिस विजय कुमार के नाम वसीयत किये जाने की बात सामने आई है, 1971 में उनकी भी उम्र तीन-से चार साल के बीच रही होगी। ऐसे में भगवान सिंह के सामने ऐसी कौन सी परिस्थिति आ गई कि अपने 22-23 साल के पुत्र के रहते हुए उन्होंने डेढ़-दो साल के बच्चे के नाम वसीयत करना आवश्यक समझ लिया। स्पष्ट है कि सम्पत्ति हड़पने की लिप्सा ने नैतिकता के साथ-साथ सब कुछ गौड़ कर दिया। फिलहाल पूरा मामला न्यायालय में है लेकिन जिस प्रकार से इस फर्जीवाड़े को अंजाम दिया गया उससे समाज में व्याप्त गंदगी अवश्य सामने आ जाती है।

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